श्री प्रवीण पटेल का यह गुजराती लेख मुझे उनके फ़ेसबुक पेज पर पढ़ने को मिला। प्रवीण भाई एशिया भूमंडल की सबसे बड़ी और अमूल पद्धति पर चल रही बनासकांठा सहकारी दूध उत्पादक संघ में असिस्टेंट जनरल मैनेजर ( प्राजेक्टस) के पद पर कार्यरत हैं। बनासकांठा सहकारी दूध उत्पादक संघ “अमूल” परिवार का भाग है ।

प्रवीण का यह लेख मासिक गुजराती पत्रिका “आँजणा युवक मंडल” के १४ वें पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है।


पिछली शताब्दी के अस्सी के दशक के दौरान मैं बनासकांठा (पालनपुर) अक्सर जाता था।

बनासकांठा दूध उत्पादक सहकारी संघ की स्थापना पिछली शताब्दी के छठे दशक के उत्तरार्ध में हुई । सरदार पटेल की प्रेरणा से त्रिभुवन दास पटेल ने सहकारिता का जो बीज आणंद में बोया वह अमूल डेयरी के रूप में केवल सफल ही न हुआ वरन त्रिभुवन दास भाई तथा डाक्टर कुरियन के कुशल दूरदर्शी नेतृत्व में वैसे ही सहकारी संगठन कालांतर में गुजरात के अन्य ज़िलों में भी उपजे और फले फूले।

एनडीडीबी की स्थापना हुई। गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग संघ बना। इरमा अपनी तरह का अनूठा प्रशिक्षण संस्थान बना। इंडियन डेयरी मशीनरी कंपनी, इंडियन इम्युनिलााजिकल्स, मदर डेयरी जैसी अपने अपने क्षेत्र मे अग्रणी कंपनियाँ बनी। देश के अधिकांश ज़िलों में दूध उत्पादक सहकारी संघ आपरेशन फ्लड I, II और III के अंतर्गत बने। दूध सहकारिताओं की पहल से भारत विश्व का सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाला देश बना। अब तो सहकारी और निजी क्षेत्र दोनों डेयरी व्यवसाय को बढ़ाने में लगे हैं । निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ रही है। इस विकास गाथा मे बनास डेयरी का स्थान अनूठा है।

पहले आपरेशन फ्लड कार्यक्रम के अंतर्गत जो कुल १८ “आनंद” बनने थे उनमें से यह एक संस्था थी।

यह तो पुरानी बात है ।

पचास साल आगे आयें ।

बनासकांठा दूध उत्पादक सहकारी संघ की उन्नीस सौ सत्तर के दशक से सन दो हज़ार बीस के दशक की विकास यात्रा पर एक नज़र हमें एक भारतीय होने के अहसास से गौरवान्वित कर देती है, आश्चर्य और रोमांच से भर देती है।

ऐसा हमारे देश मे वास्तव में हुआ ।

असंभव को संभव कर देने की विकास गाथा है बनास डेयरी और उससे जुड़े उपक्रम। आज बनास का यह डेयरी संकुल एशिया का सबसे बड़ा संकुल है।

यह विडियो पाँच साल पुराना है। फिर भी एक बार देख बार बार देखने का मन करता है।



पालनपुर और बनास यूनियन से मेरा व्यक्तिगत तौर पर संपर्क तब बना जब मै एनडीडीबी के आयलसीड और वेजीटेबल आयल विंग से पिछली सदी के सन अस्सी के दशक के दौरान जुड़ा । कालांतर मे जब बनासकांठा तेलिबिया उत्पादक सहकारी संघ की स्थापना हुई मैं इस संस्था का एनडीडीबी द्वारा नामित बोर्ड मेंबर भी बना। पालनपुर में पहली बार चार सौ मेट्रिक टन तिलहन संस्करण कर सकने की क्षमता का संयंत्र भारत में शायद पहला इतना बड़ा संयंत्र था। यह संस्था बाद में लगभग बंद हो गई थी पर अब “बिन सहकार नहि उद्धार” और “सहकारी संस्थाओं के बीच सहकार” के मूल सिद्धांतों पर अमल करते हुये बनासकांठा दूध उत्पादक सहकारी संघ के शीर्ष नेतृत्व की पहल पर इस संस्था का पुनरुद्धार हो रहा है।

दशकों बाद इस साल तीस जनवरी को गुजरात यात्रा से गुड़गाँव वापसी के दौरान बेहला, रीता, किरन मै और हमारे मैन फ़्राइडे जसवंत पालनपुर में एक दिन के लिये रुके ।जो स्नेह, सत्कार और प्रेम मैनेजिंग डायरेक्टर श्री संग्राम सिंह चौधरी और उनकी टीम विशेषकर सीनियर मैनेजर श्री प्रह्लाद वाघेला, सीनियर मैनेजर और अन्य सहकर्मियों से मिलना अभूतपूर्व था। हमे अपने घर में आने, एक दिन के लिये ही सही, घरवापसी जैसी अनुभूति हुई । और सम्मान मिला अपने घर मे अति विशिष्ट अतिथि होने का।

जीवन के संध्याकाल में हमारे लिये भी गेस्ट प्रोग्राम बना अन्य दो फोटो बनास डेयरी के दीर्घा गैलेरी में प्रदर्शित चित्रों से लिये गये हैं ।

बनास यात्रा से लौटने के बाद जब तक भारत में रहा बीमार ही रहा। बीमारी और ब्लाग या धन्यवाद का इमेल लिखूं की पेशनपेश मे मै संग्राम को धन्यवाद का इमेल भी न लिख सका। बेहला ने हम दोनों की तरफ़ से मेसेज कर दिया था । सोचा था एक ब्लाग लिखूँगा । वह भी आज तक न हो पाया था।

भला हो प्रवीण पटेल का जिनके फ़ेसबुक पोस्ट से पालनपुर यात्रा का पुनः स्मरण हुआ और यह ब्लाग लिखने की प्रेरणा मिली।

बनासकांठा दूध उत्पादक सहकारी संघ की उन्नीस सौ सत्तर के दशक से सन दो हज़ार बीस के दशक की विकास यात्रा पर एक नज़र हमें एक भारतीय होने के अहसास से गौरवान्वित कर देती है, आश्चर्य और रोमांच से भर देती है।

ऐसा हमारे देश मे वास्तव में हुआ।

असंभव को संभव कर देने की विकास गाथा है बनास डेयरी और उससे जुड़े उपक्रम। आज बनास का यह डेयरी संकुल एशिया का सबसे बड़ा संकुल है।

नीचे पालनपुर यात्रा में लिये कुछ फ़ोटो साझा की हैं ।

पर उसके पहले प्रवीण जी के लेख की बात। बहुत अच्छा लिखा है प्रवीण जी ने । एक स्त्री के उम्र के साथ बदलते किरदारों के बारे मे। वैसे यह परिवर्तन पुरूषों के जीवन में भी होता है पर उस हद तक नहीं जितना स्त्री के जीवनकाल मे। लड़की तो अपना घर छोड़ दूसरे घर चली जाती है। वहाँ उसे नये रिश्ते बनाने, सँभालने और निभाने पड़ते हैं।

आज इम्तिहान है मेरी गुजराती भाषा की समझ का। प्रवीण जी के लेख को मैं पढ़ना चाहूंगा। नीचे एक आडियो रिकार्डिंग है जिसमें मैंने प्रवीण जी के लेख के शुरूआत के कुछ अंश पढ़ने का प्रयत्न किया है।


नीचे के व्यूअर में आप “आँजणा युवक मंडल” में छपे सभी लेखों को पन्ने पलट कर देख और पढ़ सकते हैं।

जब मै पालनपुर तेलिबिया संघ की मीटिंग में भाग लेता था तब मुझे गुजराती पढ़ने और समझने में कोई दिक़्क़त न थी पर बोलने मे मैं अक्सर गड़बड़ कर देता था। कई बार बोर्ड मेंबर जो एक दो को छोड़ सभी किसान थे मुझसे कहते थे “आप हिंदी में बोलो हम समझ जायेंगे”

जब हम बनास डेयरी गेस्ट हाउस में नाश्ते के लिये डाइंनिग रूम में बैठे मेरी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। तेलिबिया संघ की बोर्ड मीटिंग भी उसी कमरे मे होती थी। संग्राम जी बता रहे थे अपने बारे में डेयरी के बारे मे। मैं उन्हें सुन तो रहा था । पर अक्सर पुरानी यादों की अस्पष्ट ध्वनियाँ और बोर्ड मेंबरों के चित्र मानस पटल पर कौंध जाते थे। अजीब सा अनुभव था।

श्री परथी भाई भटोल बनास तेलिबिया संघ के दूसरे चेयरमैन थे। मेरे उनसे बहुत अच्छे संबंध रहे। मैं तब एनडीडीबी में चेयरमैन आफिस और मानव संसाधन विभाग का काम सँभालता था । मैंने जैसे पहले लिखा है मै बनास तेलिबिया संघ का एनडीडीबी नामित सदस्य भी था। परथी भाई डाक्टर कुरियन से मिलने अक्सर आणंद आते थे । पहले मेरे कमरे में आते थे । चाय पर चर्चा और ढेर सी बातें होती थी। बाद में परथी भाई बनास डेरी के चेयरमैन बने और गुजरात मिल्क मार्केटिंग फ़ेडरेशन के चेयरमैन भी रहे।

मैंने उनसे मिलने की इच्छा की । प्रह्लाद भाई ने कार्यक्रम में फेर बदल कर समय निकाला। उस दिन परथी भाई पालनपुर चौधरी समाज आयोजित सहस्र कुंडी चंडीगढ़ यज्ञ की व्यवस्था में जुटे थे जो दो दिन बाद एक फ़रवरी 2023 से होने वाला था। दोपहर बाद उस दिन हल्की बारिश हो रही थी। मैंने फ़ोन पर बात की और कहा कि हमें दूध मंडली पर जाना है देर हो रही है । फिर कभी मिलेंगे। नहीं माने। मेरा मन तो था ही। वही यज्ञ स्थल पर जा कर परथी भाई से भेंट हुई। बहुत अच्छा लगा। पुरानी यादें ताज़ा हुई। चाय पर चर्चा हुई । बहुत स्नेह से मिले हम दोनों। एनडीडीबी छोड़ने के बाद परथी भाई से मेरी दूसरी मुलाक़ात थी। इसके पहले मै परथी भाई से कोलंबो में ताज समुद्रा होटल में मिला था जब वह भरत भाई ( तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर गुजरात मिल्क मार्केटिंग फ़ेडरेशन ) और गुजरात मिल्क मार्केटिंग फ़ेडरेशन के बोर्ड मेंबरों के डेलीगेशन में बतौर बनास डेयरी चेयरमैन, श्री लंका आये थे।

गलबा भाई बनास डेयरी के संस्थापक चेयरमैन थे। उनके नाम पर एक प्रशिक्षण संस्थान गलबाभाई डेयरी कोआपरेटिव ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई थी जिसे एनडीडीबी के मैनपापर डेवलपमेंट प्रभाग द्वारा संचालित किया जाता था। मैं कभी इस प्रभाग का सीनियर जनरल मैनेजर रहा था। प्रिंसिपल एनडीडीबी का कर्मचारी ही होता था। डाक्टर एच बी जोशी जो अब प्रिसपल पद से रिटायर हो चुके हैं पालन पुर में ही रहते हैं। उनसे भी मिलने का मन था पर हो न सका ।जोशी जी किन्ही कार्यवश पालनपुर से बाहर थे। जोशी जी ने कई लेख और कविताये वृक्षमंदिर के लिये लिखी है।पर ट्रेनिंग सेंटर की बिल्डिंग बरकरार है ।