अपनी बेचैनी का सबब जानता हूँ मैं
उसने ही रुसवा किया मानता हूँ मैं
परेशां हूँ कि दिल का राज़ सुनते ही
ख़ामोशी भीग जायेगी जानता हूँ मैं

उसकी मौजूदगी ख़ला भर देती है
दर्दे -जिगर कुछ कम कर देती है
कोशिश है न डूबूं उसकी आँखों में
वो चश्मे-नम हमें मजबूर कर देती है

उसकी आँखों में शिफ़ाई खोजता हूँ मैं
भीगी आँख से अश्क पोंछता हूँ मैं
कहीं इसरार ना कर बैठूँ चंद साँसों की
डूबती साँसों में एक आस खोजता हूँ मैं

उसकी कशिश दिल से जाती नहीं है
कोई तदबीर भी नज़र आती नहीं है
बारहा रोकता रहा हूँ अपने दिल को
उसकी नक़्श भुलाई जाती नहीं है।

तमाम लोग सुर्ख़रु हुये हैं इबादत में
कई लोग फ़ना भी हुये हैं मुहब्बत में
हमने भी अर्ज़ी लगाई है बुत-परस्ती की
लौह-ए-मज़ार न बन जाऊं कहीं उलफ़त में





कठिन शब्द:

सबब= कारण

रुसवा=बदनामी, बेइज्जत, ज़लील, लांछित

ख़ला= चुभन, पीड़ा, दर्द

चश्में-ए-नम= आँसू भरी आँखेँ

शिफ़ाई= रोग से आराम, आरोग्य, उपचार

इसरार= मांग, आग्रह, हठ

कशिश= खिंचाव, आकर्षण

तदबीर=इंतिज़ाम, युक्ति, चारा, तरकीब, मंसूबा, उपाय

नक्श=तस्वीर, चित्र, छवि

सुर्ख़रु= तेजस्वी, कांतिवान, प्रसिद्ध, कामयाब

फ़ना= बर्बाद, समाप्त

बुत-परस्ती= मूर्ति पुजा

लौहे-ए-मज़ार= कब्र पे लगाई जाने वाली शिला-लेख

उलफ़त= प्यार, प्रेम