डाक्टर पी के श्रीवास्तव

संप्रति बंगलूरू निवासी एनडीडीबी के भूतपूर्व कर्तव्यपालक डाक्टर प्रेम कुमार श्रीवास्तव, “पीके” की पहचान केवल एक तकनीकी और प्रशासनिक अधिकारी की नहीं है; वह “डेयरी व्यवसाय गुरु” के रूप में भी जाने जाते हैं जो एक कुशल कंसलटेंट के रूप में अपने ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर, “पीके” ने अपने भीतर के कलाकार को भी जगाया है।शौकिया शायरी और व्यंग्य लेखन में उनकी रुचि ने उनकी कला रुचि को एक नए आयाम में प्रवेश कराया है।

चिड़िया को कभी प्यार करते देखो
प्रेम गुण दोष के सहारे करती जाती है,
ऊंचे परवाज़ फुर्त निगाह आज में जीना
इन्हीं शर्तों पे हर रोज़ जीती जाती है।

चिड़िया को कभी अन्न जुटाते नहीं देखा
बिन बोझ के जियो बताती जाती है,
लॉकर रक्खे न कभी गहने बनाया न महल
कश्मकश में न जियो बताती जाती है।

घोंसले भी बनाती है जब ज़रूरत हो
जिगरी यार बनाती भुलाती जाती है,
उड़ जाती है ज़िंदगी की राहों पे
गया बच्चा किस ओर भुल जाती है।

चिड़िया दिखती नहीं उदास कभी
बात करती है खेलती है उड़ जाती है,
दर्द हो भी तो कब बताती है भला
उस हाल में कहीं दूर चली जाती है।

लोग आसाइशें तमान जुटाते रहते
ज़िंदगी अपने पराये में गुज़र जाती है,
निगल लेते हैं इतना जिसे पचा न सकें
उम्र छीन झपट में ही गुज़र जाती है।

कभी आदमी उन राहों पे चल पायेगा
जिन पे चिड़िया फुदकती जाती है,
इल्मी नुस्ख़े जो मुर्शिद ही दिया करते हैं
चिड़िया इंसान को यूं ही बताती जाती है।

कठिन शब्द: परवाज़ = उड़ान; फुर्त निगाह= चंचल दृष्टि; इल्म= ज्ञान; आशाइशें= सुख के समान; नुस्ख़े= फोर्मूले; मुर्शिद = गुरु, शिक्षक, श्रेष्ठ व्यक्ति;