हमारे एक बड़े पढ़े लिखे समझदार मित्र हैं। अमरोहा से है। अब डेरा शहर वडोदरा में है। पर वह अमरोहा भूल नहीं पाते। मैं भी आणंद, गुड़गाँव और शहर टोरंटो मे बसर करने के बाद भी बंदुआरी और गोरखपुर भूल नहीं पाता।

मेरे दोस्त ने शहर वडोदरा में रहते हुये भी अमरोहा की याद मे घर का नाम “अमरोहा” रखा है ।

गोरखपुर छोड़े सत्तावन साल से ऊपर हो गए हैं, लेकिन हमें अपने मूल वतन पर नाज़ है। चूँकि मेरे गाँव में कोई शायर नहीं हो सका, इसलिए हम अक्सर यह कहते हैं कि “हम गोरखपुर से हैं।”

इस पर कटाक्ष करते हुये किसी छुटभैया शायर ने कहा;

“गोरखपुरी बग़ल में छुरी, खायें सतुआ बतायें पूरी”

यह शेर गोरखपुर के निवासियों के बारे में ग़लतबयानी करता हुआ मशहूर हो गया। तब से, मैं गोरखपुर से ताल्लुक रखते हुए भी अपने नाम के आगे “गोरखपुरी” नहीं लगाता।

पहले जब मेरे मित्र कोई शेर सुनाते थे, तब मैं यह कहकर फ़ारिग हो जाता था, “उस्ताद की उस्तादी से तो नाक में दम है, वाह वाह ततैया खां, फ़क़त तेरा ही तो दम है”।

लेकिन आगे चलकर वह बड़े-बड़े शायरों के शेर सुनाने लगे।मैंने गौर किया कि वह ज़्यादातर अपनी खुद की तुकबंदी के बाद एक अच्छा सा शेर सुना देते हैं।

जब मुझे उनके द्वारा भेजा गया जौन ऐलिया साहब का यह शराब और जश्न वाला शेर मिला, तो मैं भौंचक्का रह गया:

तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए
या'नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई
जौन ऐलिया

अमरोहा बड़ी-बड़ी हस्तियों की जन्मभूमि के रूप में मशहूर है, जिनमें जौन ऐलिया का नाम प्रमुख है। जौन साहब उर्दू अदब की दुनिया में बहुत बड़े नाम हैं। उन्होंने भारत की सरहद पार कर कराची, पाकिस्तान में निवास किया, लेकिन अमरोहा की याद उन्हें ज़िंदगी भर सताती रही, ठीक वैसे ही जैसे मेरे मित्र को भारत में रहते हुए भी सताती है।

डिक्शनरी से पता चला कि फ़िराक़ का मतलब जुदाई या विरह होता है। फिर किसके फ़िराक़ में जश्न मनाया गया और जौन साहब ने खूब शराब पी? हमें अब तक नहीं मालूम। पता चलेगा तो बतायेंगे। हो सकता है जौन साहब ने अपनी माशूक़ा से जुदाई के आलम में जम के शराब पी हो।

जब मेरे मित्र की तरफ़ से अच्छे शेर आने लगे, तब मैं भी इस “फ़िराक़” में पड़ा कि उनके शेर का जवाब शेर से दूँ, और अगर मुमकिन हो सके तो सवा “शेर” में कैसे दिया जाए।

“फ़िराक़” से याद आ गए रघुपति सहाय “फिराक” गोरखपुरी। अब तो हाल ऐसा है कि जब भी मेरे मित्र जौन ऐलिया का शेर कहते हैं, तब मैं फ़िराक़ गोरखपुरी साहब का लिखा शेर पढ़ देता हूँ।

अब एक नज़र फ़िराक़ साहब के शेर पर जो मैंने अपने मित्र को भेजा था। उधर जौन साहब जुदाई में जश्न मनाते हुए जम के शराब पीते हैं, तो हमारे फ़िराक़ साहब हँसी-खुशी मय-खाने में आकर शराब पीकर संजीदा हो जाते हैं। आखिर क्यों?


आए थे हंसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए। 
फ़िराक़ गोरखपुरी

गौर तलब हो कि जब रघुपति सहाय जी ने गोरखपुरी तख़ल्लुस लगाया था तब यह शेर “गोरखपुरी बग़ल में छुरी, खायें सतुआ बतायें पूरी” प्रचलन में न था नहीं तो यकीनन फ़िराक़ साहब गोरखपुरी की जगह कुछ और तख़ल्लुस रखते ।

अगर आप को शेरों शायरी अच्छी लगती है तो जौन ऐलिया और फ़िराक़ गोरखपुरी का लिखा ज़रूर पढ़ें और सुनें। नीचे कुछ लिंक पेश कर रहा हूँ फ़िराक़ और जौन ऐलिया के कहे को सुनने और लिखे को पढ़ने के लिये।

आप शायद पूछना चाहते होंगे मेरे यह अमरोहवी दोस्त हैं कौन? बताऊँगा पर फ़ुरसत से ।

जौन ऐलिया समस्त लेखन

जौन ऐलिया के विडियो



फ़िराक़ गोरखपुरी का समस्त लेखन

फ़िराक़ गोरखपुरी के विडियो