आज से एक दैनिक लेख शृंखला का हिंदी में कहूँ तो आरंभ या प्रारंभ कर रहा हूँ। ज्योंही यह पंक्ति लिखी अंदर से भोजपुरी मन बोला “मरदेसामी प्रारंभ नांहीं आरंभ कहल जाला। प्रारंभ तब कहल जाला जब कउनो चीज फिर से सुरू कइल जा।”

सुधार

आज से एक दैनिक लेख शृंखला का हिंदी में कहूँ तो आरंभ और उर्दू में कहना हो तो कहूँगा आग़ाज़ या शुरूआत कर रहा हूँ। शीर्षक रहेगा समसामयिक चर्चा

तो देवियों और सज्जनों आज की समसामयिक चर्चा होगी समकालीन राजनीतिक माहौल पर। श्री सोमपाल शास्त्री और श्री शीतल सिंह के बीच हुई बातचीत पर जो सत्य हिंदी यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है ।

सत्य हिंदी यूट्यूब चैनल हैं आशुतोष जी का। वही आशुतोष जी जो पत्रकारिता से राजनीति का सफ़र कर आधुनिक यूट्यूबी पत्रकारिता पर लौट आये है ।

सत्य हिंदी का प्रशंसक तो मैं क़तई न था न हूँ।भविष्य मे क्या होगा नहीं कह सकता।

कारण? व्यक्तिगत है। अक्सर सत्य हिंदी के विडियो देखने के बाद मैं सत्य हिंदी को असत्य हिंदी कहता हूँ । पूरा विडियो तो कभी न देख पाता था। क्योंकि यह चैनल “फ़्रस्ट्रेटेड मार्गदर्शक पत्तलकारों” का बटोर है।इस बात पर कभी फिर लिखेंगे ।

हुआ यह कि हमें आज, बहुत दिन बाद, व्हाटसएप पर डाक्टर नवरे से एक यूट्यूब विडियो लिंक मिला । अब आप पूछ सकते हैं कि कौन डाक्टर नवरे? अरे वही डाक्टर मुकुंद नवरे जो हमारे समय की “अभूतपूर्व” एनडीडीबी के हमारी ही तरह के भूतपूर्व “कर्तव्यपालक” हैं और जिनके बहुत से हिंदी अंग्रेज़ी लेख वृक्षमंदिर पर प्रकाशित हैं ।

डाक्टर नवरे प्रेषित सत्य हिंदी पर सोम पाल शास्त्री जी के साथ शीतल सिंह की बातचीत बहुत संतुलित, जानकारी से भरपूर और अर्थपूर्ण लगी।कई बातों पर मेरा मत उनसे भिन्न है पर फिर भी उम्र के इस पड़ाव पर इतनी सहजता से कठिन विषयों पर शास्त्री जी की बेबाक़ बातचीत मन को छू गई।

एक दिन के लिये ही सही असत्य हिंदी मेरे लिये संतुलित हिंदी बन गया।

आप भी देखिये और सुनिये । शास्त्री जी की हिंदी कही कहीं कुछ लोगों को क्लिष्ट लग सकती है । पर पूरी बात आसानी से समझ से आ जाती है। वैसे कई मित्र कहते हैं मेरी हिंदी भी क्लिष्ट है।

वैसे सोमपाल जी और रघुवंश प्रसाद सिंह जब क्रमशः कृषि राज्य मंत्री और कृषिमंत्री थे तब उन दिनों में ही डाक्टर कुरियन और डाक्टर कुरियन की अभूतपूर्व एनडीडीबी का सेंटर में दबदबा कम होते होते नगण्य हो होने लगा था। शास्त्री जी कार्यकाल में ही एनडीडीबी के सीएजी आडिट वाला प्रकरण हुआ था। एनडीडीबी तब तक एक सरकारी स्वायत्त संस्था से “बाडी कार्पोरेट अंडर एन एक्ट आफ पार्लियामेंट” बन चुकी थी।

पर जैसा कि जगविदित है कि यदि मिनिस्टर साहब चाहें तो वह कोई न कोई रास्ता अपने मातहत बड़े बाबू लोगों द्वारा अपने मंत्रालय की किसी भी संस्था मे छेडछाड करने के लिये या दूसरे के फटे पाजामे में टाँग अड़ाने के लिये स्वतंत्र है। ऐसा कुछ ही हुआ था । पूरा घटनाचक्र व्यक्तिगत था ।

इस पर एक रोचक लेख लिख सकता हूँ।लिखूँगा बहुत सी अंदर की बातें भी बाहर आयेंगी ।क्योंकि तब मैं एनडीडीबी मे कर्तव्य पालन कर रहा था। आडिट कौन करे ? सीएजी या पार्लियामेंट द्वारा पारित एनडीडीबी एक्ट मे लिखे अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित कोई चार्टर्ड एकाउंटिग फ़र्म ? आडिट के अधिकार क्षेत्र को लेकर यह विवाद इन मिनिस्टर साहबान की शह पर ही हुआ था। शुंगलू साहब कांप्ट्रोलर एंड आडिटर जनरल (सीएजी) थे और सुना जाता है उनकी डाक्टर कुरियन से पुरानी खुंदक थी ।

फिर क्या था। मिनिस्टरों की शह सीएजी साहब एनडीडीबी के पीछे पड़ गये । बतर्ज हम हवन करेंगे हम हवन करेंगे मन बना लिया हम आडिट करेंगे हम आडिट हम आडिट करेंगे ।

पर दाद देनी होगी डाक्टर कुरियन की । जब तक चेयरमैन रहे सीएजी आडिट नहीं ही हुई।

आडिट हुई हर साल पर एनडीडीबी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार ही । सीएजी की नही।

बाद मे एनडीडीबी ने यह मामला केंद्रीय सरकार की कमिटी आफ सेक्रेटरीज के सम्मुख रखा। कमिटी ने एनडीडीबी और सीएजी का पक्ष सुनने के बाद निर्णय दिया कि यह मामला अदालत ही सुलझा सकती है। एनडीडीबी ने 1998 मे दिल्ली हाईकोर्ट मे मुक़दमा दायर किया । और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने 2010 मे कहा कि सीएजी को कुछ विशेष प्रावधानों के अंतर्गत एनडीडीबी एक्ट के प्रावधानों के बावजूद आडिट करने का अधिकार है । पूरा जजमेंट यहाँ उपलब्ध है क्लिक करें। उन विशेष प्रावधानो की स्वीकृति मिनिस्टर साहबानों ने सीएजी को दे दिये थे । पर मुक़दमा जीतने के बाद भी सीएजी ने जिन सालों का आडिट करने के लिये मुक़दमा लड़ा (1987-1994) उस आडिट को करने से मना कर दिया।क्यों? इतने साल बीत गये कोई फ़ायदा नही । शायद हवन हो गया होगा !