जातिगत, धर्मगत, क्षेत्रगत, वर्गगत

असंतुष्टि से तुष्टि, तुष्टि से तृप्ति

लोलकों की डंडियां

डोलती हैं इधर से उधर, उधर से इधर

वास्तविकता से बे- खबर
जनता जो कहलाती है जनार्दन

बे असर, ख़ुश है मूर्ख बन कर

राजनीतिज्ञ खोले अपने केश गुच्छ

खुजलाते हैं खभर खभर