4 March 2025

जनाब अरविंद उर्फ़ मानू अमरोहवी, 

मन मे एक बात उठी , बहुत देर से उमड़ घुमड़ रही है । वैसे ही  जैसे पेट में घुड़ घुड़ होती है हवा निकलने के पहले की तरह,  बिलकुल उसी तरह। 

बात यह है  कि मन कह रहा है नीचे लिखे को वृक्षमंदिर पर छेंप दूँ ? मने पूछ रिया हूँ क्यूँकि आपकी रज़ामंदी हो तब ही ऐसा करना मुनासिब होगा। 

इसीलिए पूछ रिया हूँ ,

बताइये, क्या मुनासिब होगा ?

आपका ही,

शैलेंद्र

 


 

6  March 2025 

शुक्रिया शैलेंद्र,

बिस्मिल्लाह कर छाप दो। यह सब घर की बात है । लिखने वाले और पढ़ने वाले सब अपने हैं। AI ने मनु जैसा लिखा उसी तरह पढ़ा और लिखा असल में यह  मानू है। अगर हो सके तो मनु से मानू कर देना। 

कनाडा पहुँच गये होगे। अपना और सबका खयाल रखना। थोड़े लिखे को बहुत समझना । बाक़ी फिर कभी। 

अरविंद 

 


मानू अमरोहवी या मानू अमरोहा वाले डाक्टर अरविंद गुप्ता के नाम से भी जाने जाते हैं। बंदुआरी के बाबू साहब को शैलेंद्र भी कहा जाता है। इन दोनों की मुलाक़ात अस्सी के दशक में गुजरात स्थित दूध की राजधानी आणंद में हुई। साथ काम किया और दोस्ती ऐसी हुई कि बस पूछो मत । फिर जैसे जैसे वक्त बीतता याराना गाढ़ा होता गया। दोनो की उम्र का कुल जोड़ लगभग एक सौ पचास साल का तो हो ही गया होगा। उनके बीच हाल में हुई खत-ओ-किताबत पेश है।

रोया हूँ तो अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ
जौन एलिया

 

हालिया खत-ओ-किताबत

 

शैलेंद्र उर्फ़ बंदुआरी के बाबू साहब का पहला ख़त अरविंद उर्फ़ मानू अमरोहवी के नाम

 

26-2-2025

सुना है जिस जगह हजरत शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह आये, और जहाँ उन्हें आम और रूआ  मछली खाने को दी गई,  कालांतर मे उस जगह का नाम अमरोहा पड़ गया। 

उसी नामचीन अमरोहा के बाबू अरविंद को, गांव चतुर बंदुआरी, जिला गोरखपुर के, बाबू शैलेंद्र कुमार इस ख़त की मार्फ़त आदाब भेज रहे हैं।

 साथ ही अपनी जौनपुरिया बेगम किरन की हिदायत के मुताबिक़ यह इत्तिला भी कर रहे हैं कि किताब “गुप्त भारत की खोज” यहाँ पहुँच गई है।  किताब उन्हें बहुत पसंद आई और आने वाले दिनों में वह बड़े चाव से इस किताब को पढ़ने का मन बना चुकी हैं। 

जौनपुरिया बेगम भी  आप जनाब की ख़िदमत में आदाब पेश कर रही हैं। परवरदिगार और काली माई से दुआ है कि नीला भावनगरी, फरजंद रवि और आप सब सेहतमंद और राज़ी खुशी रहे और शिवरात्रि पर भोले बाबा से प्रार्थना है कि वह आप सब पर नज़रें इनायत बनाये रखें।  भवानीगढ के सरदार बहादुर विरिंदर, फाजिलका की सरदारनी रितिंदर, वजीर जसवंत , जनाना ख़ानसामा झरना और सफ़ाई कामदार अशरफ़ सभी यहाँ मज़े में हैं । 

शैलेंद्र 

 


 

अरविंद उर्फ़ मानू अमरोहवी का जबाबी ख़त शैलेंद्र उर्फ़ चतुर बंदुआरी के बाबू साहब को

 

27-2-2025

जनाब, गाँव चतुर बंदुआरी के बाबू साहब,

आपका ख़त पढ़कर तबीयत ख़ुश हो गई।

माशा अल्लाह, इतनी अच्छी पकड़ उर्दू ज़ुबान पर! वल्लाह! अगर आपकी इजाज़त हो तो आपको हम मौलाना शैलेंद्र के नाम से भी पुकार सकते हैं।

एक सवाल पूछने की हिम्मत कर रहा हूँ। गुस्ताख़ी माफ़…

ये आपके दिमाग़ का करिश्मा है या फिर AI का कमाल?

ख़ुदा आप सबको लंबी उम्र दे और वक़्त आने पर जन्नत बख़्शे।

इंशा अल्लाह।

अरविंद उर्फ़ मनु_अमरोहावाले

 


 

शैलेंद्र उर्फ़ बंदुआरी के बाबू साहब का दूसरा ख़त अरविंद उर्फ़ मानू अमरोहवी के नाम

 

28-2-2025

शुक्रिया,  जनाब अरविंद उर्फ़ मनु अमरोहावाले, 

आपका ख़त मिला ।  दिल ख़ुश हो अगरबत्ती बन गया। आसपास मनभावन  सुगंध रम गई 

मेरा ख़त मेरे ही दिमाग़ का कारनामा था। आपके ख़त को पाने के बाद एआई से हमने कहा Edit and make it lyrical और इसके आगे आपको लिखा पहला ख़त पेस्ट किया तो एआई में बैठी जिन्न ने फ़ौरन  यह छाप दिया ः-

सुना है जिस जगह हजरत शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह आए,जहां आम और रूआ मछलियाँ उनके कदमों में समाए।कालांतर में उस धरती का नाम अमरोहा पड़ा,जहाँ की खुशबू में प्रेम का हर रंग बसा।

उसी अमरोहा के बाबू अरविंद को,गाँव चतुर बंदुआरी के बाबूशैलेंद्र कुमार का सलाम है,इस ख़त के ज़रिये दिल से भेजा गया यह पैग़ाम है।जौनपुरिया बेगम किरन की हिदायत के अनुसार,“गुप्तभारत की खोज” की किताब यहाँ पहुँच गई है,उनकी आँखों मेंचमक, और दिल में उत्साह छा गया है।

किताब की पंक्तियों में वो खो जाने को तैयार,आने वाले दिनों में वह पढ़ेंगी इसे बड़े प्यार से। जौनपुरिया बेगम भी आपके कदमों मे आदाब पेश करती हैं,परवरदिगार और काली माई से दुआ करती हैं।

नीला भावनगरी, फरजंद रवि, और आप सब,सेहतमंद और राज़ीखुशी रहें, ये है सबकी ख्वाहिश।शिवरात्रि पर भोले बाबा से प्रार्थना है,आप सब पर अपनी नज़रें इनायत बनाये रखें, ये है हमारी दुआ ।

भवानीगढ के सरदार बहादुर विरेंद्र,फाजिलका की सरदारनी रितिंदर कौर ,हमारे वजीर जसवंत, जनाना ख़ानसामा झरना,सफाई कामदार अशरफ़, सभी यहाँ मज़े में हैं,खुशियों के रंग में रंगीनी, हरदिल की धड़कन में हैं।

शैलेंद्र