
साधारणतः मैं ऐसी मनोरंजन सामग्री कुछ ख़ास मित्रों से ही शेयर करता हूँ । पर आज कुछ मूड ऐसा बना कि मैंने अपने आप से कहा क्यों न सबसे साझा करूँ? हर्ज क्या है। लीजिये हाजिर है आज का संकलन !
नेता जी थे, नेता हैं और नेता बने रहेंगे। ज़रूरत पर उनकी कंघी भी भक्त ही करेंगे ।
नैरेटिव बनाना और बिगाड़ना एक ऐसा खेला है जिसमें पैसा और समय तो लगता ही है पर साथ ही तकनीकी कुशलता और संवाद करने और समझने की “समझ” भी आवश्यक है।
बहुत से लोग आज कल यूट्यूबरी कर पैसा कमा रहे हैं। यह शोध के लिये गंभीर विषय होगा ।
यदि कोई शोधार्थी एक रिसर्च पेपर निकाल सके ताकि पता तो चले कि पिछले दस सालों मे कुल कितने बेकार लोगों को यूट्यूब और सोशल मिडिया ने रोज़गार उपलब्ध कराया ? सब यूट्यूबरियों सोशल मिडिया वालों ने मिल कर कुल कितनी कमाई की? औसतन प्रति यूट्यूबर ने कितनी कमाई की। कितने घंटे काम किया आदि आदि।
चलिये शुरू करते हैं विनोद कापरी जी से।
विनोद कापरी जी की मोदी विरोधी इस पोस्ट पर बहुत से लोगों ने टिप्पणियाँ की ।जैसे;
1:- W7 एंजिन है जो पिछले ५ साल से बन रहा है पार्किंग किंग। पार्किंग में रहने से तुझे देश की तराकि का कोई ज्ञान नही है । @Deepak_Vidhika
2:- कापरी जी,
आज के दस साल पहले इंजन फेल होते थे, लोग घंटो अटके रहते थे और फिर दूसरे इंजन से काम होता था।
आज दूसरा इंजन तुरंत आ जाता है और घंटो अटकने की खबर नहीं आती है।
यही दस सालों का सच है।@Bihar_Nawada

3:- nko nahi samj aayega inka engine 10 saal se kharab hai par aaj tak koi shunting engine nahi mil raha hai @abhaybhanshali10
फिर कुछ देर बाद यह समाचार मिला । नई दिल्ली वाराणसी वंदे भारत ट्रेन के इंजिन में ख़राबी हुई और ट्रेन को मालगाड़ी के इंजन से खींच कर इटावा ले जाना पड़ा। जहां से यात्री शताब्दी में बैठा कर गंतव्य तक पहुँचाये गये।
लगता है कापरी जी सही हैं।उनकी नैरेटिव सही निकला और चल भी पड़ा। जय हो!
टिप्पणियाँ तो टिप्पणियाँ हैं ।पक्ष या विपक्ष जो लिखे उसकी हो जायेंगी।बिलकुल शराब की तरह जो “पिये” यानि लिखे उस पर चढ़ कर बोलती और उससे बुलवाती है कभी मोदी जी के भक्तों की बोली और कभी राहुल जी के या अन्य विरोधी पार्टियों के भक्तों की।
पचास साठ साल पहले जब मैं जवान था भारत को कृषिप्रधान देश कहा जाता था । अब भारत यानि इंडिया भक्त प्रधान देश है। भारतीय हैं तो आशा की जाती है, नही विश्वास किया जाता है कि आप किसी न किसी के भक्त हैं। और कोई न मिला जो भारतीय अपना ही भक्त बन सकता है। किसके भक्त हैं और क्यों हैं अथवा कब तक रहेंगे यह आप के ऊपर निर्भर रहेगा। वैसे किसी भगवान का भक्त होना ख़तरनाक भी हो सकता है। अब तो वैज्ञानिक युग की इक्कसवीं सदी चल रही है। पहले भी भगवान विवादित थे ।अब भी हैं।
भगवान केवल एक हैं कि करोड़ है? भगवान हैं भी कि नही? विवाद चलते रहते हैं। अदालतें भी कोई टिप्पणी या निर्णय देने से आस्था का विषय है मान कर बचती रहती हैं। वैसे भगवान को घंटा भर फ़र्क़ नहीं पडता कोई उन्हें माने या न माने।
इस बीच राहुल जी का पाताल लोक अमेरिका से किया गया देवता शब्द का विवेचन वायरल हो रहा है। कह रहे हैं देवता का मतलब गाड नहीं है, देवता विचार है जो तब आता है , हो जाता है या लगने लगता है जब व्यक्ति अपने “स्वयं” को नष्ट कर लेता है। जब उसके अंदर जो होता है वह वहीं कहता है करता है आदि इत्यादि ।
चलो मानना है तो मानो न मानना है तो मेरी बला से।
बतर्ज अमरीकी प्रेसिडेंशियल अगर चुनाव के दौरान भारत में भी उम्मीदवारों में बहस होती और देवकृपा से केवल दो उम्मीदवार ही रहते, राहुल जी और मोदी जी, तो बहस कराने वाले “नेशन वांटस टु नो” वाले टीवी एंकर के लिये यह अच्छा बना बनाया सवाल रहता ; “आपके अनुसार देवता कौन होता है? देवता का अर्थ क्या है? “
मुझे लगता है दोनों का जबाब होता संविधान । फिर बहस का अंत नहीं यहीं से शुरुआत होती। मोदी जी गिनाते और कहते “राहुल जी शर्म करो कितनी बार आप के परदादा, नानी, और पिता जी ने संविधान की चीरफाड़ की है”। राहुल जी कहते कि “आप अब तक मणिपुर नहीं गये मैं तीन बार हो आया। मोदी जी , मणिपुर न जा कर आपने संविधान की धज्जियाँ उड़ा दीं।कहाँ है संविधान। संसद भवन में संविधान की पुस्तक पर माथा टेकने से संविधान यानि हमारे देवता का न कुछ बनेगा न बिगड़ेगा।”
अंतहीन होती यह बहस। तब तक जब तक नया चुनाव घोषित न हो जाता।
किसी ने ठीक ही कहा है ।

श्री तुषार राय अपने X पर दिये परिचय के अनुसार दैनिक भास्कर के सीनियर विडियो जर्नलिस्ट हैं । इनके ही जैसे बहुत से लोगों ने बहुत बच्चा पैदाइश के समय हुई बच्चा बेचू खबर को वायरल किया । इस खबर का निराकरण किया नितिन शुक्ला जी ने इस तरह दिया;
“अब आता है ट्विस्ट, योगी बाबा की पुलिस हरकत में आती है, पिता को ढूंढ निकलती है, फिर होता है कहानी का पटाक्षेप, बच्चा खरीदने वाला भोला यादव, मिडिएटर अमरेश यादव, तारा सिंह और हॉस्पिटल के 2 कर्मचारी गिरफ्तार किए जाते हैं, बड़ा सवाल ये है की क्या इस पूरी कहानी को योगी सरकार को बदनाम करने के लिए लिखा गया था?
कल तक जो पत्रकार गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे वो सारे आज यादव गैंग के पर्दाफाश के बाद बिल में घुस गए हैं, इसलिए जागरूक रहिए और मुझे फॉलो कर लीजिए, हो सकता है कोई न्यूज़ कुछ दिन बाद यहां दिखाई दे, जब भी ऐसा हो समझ जाइए दाल में कुछ काला है, और जब भी न्यूज आयेगी पूरे सच के साथ आएगी, हम TRP के लिए नही बल्कि सच के लिए लिखते हैं”
आप जानना चाहेंगे नितिन जी कौन । स्पीकर लाइफ़ कोच एनेलिस्ट जर्नलिज़्म है । कतर में रहते है। इनका अपना यूट्यूब चैनल है।
शायद आप पूछेंगे कि सत्य क्या है। मुझे नहीं मालूम।शायद किसी को भी नहीं मालूम ।
वैसे मेरी प्रिय पुस्तक राग दरबारी के पहले या दूसरे पन्ने पर ही श्रीलाल शुक्ल जी सत्य के बारे में उदाहरण देते हुये यह लिख चुके है ।
“वहीं एक ट्रक खड़ा था। उसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिए हुआ है। जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे। पुलिसवाले उसे एक ओर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ओर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के किनारे पर है। चालू फैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाज़ा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था। इससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गई थी, साथ ही यह खतरा मिट गया था कि उसके वहाँ होते हुए कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है।”