डाक्टर हेमेन्द्र जोशी

डाक्टर जोशी, 1977 से 2000 तक एनडीडीबी और साबरमती आश्रम गौशाला प्रोजेक्ट में कर्तव्य पालन करते थे। कर्तव्य निर्वहन की उनकी दूसरी पाली 2001 से 2012 तक बनास डेयरी में रही ।गीत, संगीत ,लेखन, पठन, पाठन मे अभिरुचि । संप्रति पालनपुर वासी डाक्टर जोशी वृक्षमंदिर के लिये समय समय से लिखते रहते हैं।डाक्टर जोशी के वृक्षमंदिर पर प्रकाशित लेख इस लिंक पर उपलब्ध हैं


 

 

किसी काम की जिम्मेदारी काम पूरा होने तक लगे रहने से ही सफलता मिलती है – यह पाठ हमारी एनडीडीबी ने मुझे सिखाया !

बात मेरे प्रोफ़ेशनल जीवन के शुरुआती दिनों की है। मेरी पहली पोस्टिंग “साबरमती आश्रम गौशाला ,बीडज” में हुई थी, जो हक़ीक़त मे अब भारतीय पशु चिकित्सकों का “मक्का” बन चुका है। बीडज तब शहरी सुख सुविधाओं से एक दम अलग धलग था। सड़कें संकरी थी , बिजली कभी आती कभी जाती थी , बच्चों के स्कूल कैंपस से काफ़ी दूर थे।

सन 1985 मेरा तबादला बीडज से एनडीडीबी, आणंद मे हुआ । मै मानो “जन्नत” मे आ गया। एनडीडीबी आणंद कैंपस का वातावरण बीडज के मुक़ाबले “अत्याधुनिक” था । जगह के बदलाव के साथ मेरे कार्य क्षेत्र में भी परिवर्तन हुआ। कवियों की भाषा में कहें तो आणंद आने से आनंद से भरपूर मन रूपी “मयूर” नाच उठा था !

शुरुआत में मैन पावर डेवलपमेंट डिविज़न मे मुझे सहकार विकास की तालीम का कार्य भार सौंपा गया , जिसमें किसानों और डेयरी सुपरवाईजरो को आनंद पैटर्न याने की अमूल डेयरी माडल के संदर्भ मे सैद्धान्तिक और प्रायोगिक तालीम देना होता था । बाद मे मुझे अंतरराष्ट्रीय तालीम कार्यक्रमों से भी जुड़ने का मौक़ा मिला। मेरी ज़िम्मेदारी तालीम का आयोजन और संयोजन (coordination) की भूमिका का निर्वहन था। अंतरराष्ट्रीय तालीम कार्यक्रम के अंतर्गत, तालिमार्थियों के लिये अमूल डेयरी, दूध सागर डेयरी मेहसाना और मानसिंह ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट में भी अभ्यास मुलाक़ात (study visit) का आयोजन करना होता था।

बात तब की है जब श्री लंका से तालिमार्थीयों की एक बैच आया थी ,जिसका मै संयोजक था । सैद्धान्तिक तालीम के बाद मै उन्हें दूध सागर डेयरी दिखाने मेहसाना ले गया था ।

सारे तालिमार्थी खुशखुशालमुद्रा मे ,गीत गुनगुनाते हुए सफर कर रहे थे और मै भी उनके साथ अंतर्मन से जुड़ गया था ।हक़ीक़त मे जब तालिमार्थी और तालीम देनेवाले के बीच की दूरी ख़त्म हो जाती है तभी तालीम का कार्य सफल तरीक़े से होता है । यह सच है और इसमें शक की कोई गुंजाइश नही है !

ख़ैर हमारा मेहसाना का सफर काफी फलदायी रहा ।वापिस आते समय तालिमार्थीयों को अपना रिटर्न एअर टिकट एनडोर्स करवाना था जिसके लिये हम लाल दरवाजा के पास , इन्डियन एयर लाइन्स की ऑफिस के पास रुके और जब सब तालिमार्थियों ने अपना कार्य निपटा लिया हम वापस आणंद चल पड़े ।

तालीम का विश्लेषण करने से हमे पता चला की तालिमार्थीयों को अभ्यास मुलाकात से स्पष्ट रूप से ज्ञान वर्धन हूआ था।

कभी खुशी कभी गम का दौर जीवन मे चलता रहता है और यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ ।एक तालिमार्थी ने अपना एयर टिकट अपने वैलेट मे रखा था , वह वैलेट कहीं गिर गया । फिर क्या था उसके चेहरे पर उदासी के बादल छा गये ।

आणंद पहुँचते ही मैंने तत्काल साबरमती आश्रम गौशाला, अहमदाबाद से संपर्क किया । उन दिनों वहा के अधिकारी डाक्टर केसी पटेल थे। डाक्टर पटेल को मैंने सारा ब्योरा दिया और एयरलाइंस आफिस से संपर्क कर टिकट के बारे जानकारी देने को कहा । मैटर को भलीभांति फोलो किया लेकिन परिणाम निराशाजनक रहा ! इसी बीच जैसे जलती हूई आग मे घृत डालने से आग ओर फैलती है उसी तरह पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग मे स्ट्राइक होने से श्रीलंका सरकार से भी संपर्क नही हो पा रहा था ताकि वहाँ से टिकट के बारे मे कुछ किया जा सके।


उसी दरम्यान, मेरा दो दिन की छुट्टी लेकर निजी काम के लिये अहमदाबाद, जहाँ मेरा छोटा भाई रहता था, जाना हुआ । खोये हुये टिकट की चिंता ने दिमाग़ का दही बना रखा था । ठीक से सोना भी काफी कठिन सिद्ध हो रहा था। अहमदाबाद प्रवास के दूसरे दिन मैंने डाक्टर केसी पटेल का संपर्क करके उसे रूबरू मिलने चला गया । हम साथ बैठ कर इसी विषय पर बातचीत कर रहे थे। डाक्टर केसी पटेल ने इन्डियन एयर लाइन्स के इन्फ़ॉर्मेशन काउंटर के अधिकारी से कई बार बात की थी।पर बात बेनतीजा रही थी ।मै भी आधे घंटे तक लैंड लाईन फ़ोन पर लगा रहा। उस समय हम दो ही आफिस मे थे।

मेरे दिमाग की बत्ती जली और अंदर से आवाज आई इन्डियन एयर लाइन् के स्टेशन मैनेजर से संपर्क करने की !मैने धड़कते दिल से टेलीफोन जोड़ा और स्टेशन मेनेजर का संपर्क स्थापित करने को कहा ,कुछ पलों के बाद स्टेशन मैनेजर लाईन पर आये , उन्हें सारा वृतांत बताया, तब उन्होंने मुझे बीच में ही रोकते हुये कहा “ एक मिनट साहब, कल मेरा ड्राइवर गोपाल फुटपाथ पर से एयर टिकट मिलने के बारे मे बता रहा था । उसे एक वैलेट मिला जिसमें केवल टिकट ही था, और कुछ नही था ! यह सुनते ही दिलकी धडकन मिस हो गई, मै कुर्सी से उछल कर ईश्वर का शुक्रिया अदा करने लगा !

हमने तुरन्त आनंद फोन कर के डाक्टर मित्तल को बताया ,वह दंग रह गये कि मै कैसे टिकट की खोज मे साबरमती आश्रम अहमदाबाद पहुँच गया था! डाक्टर मित्तल ने मेरे काम बहुत सराहा जो मेरे लिये सबसे बडी बात थी,मेरा हौसला अफजाई हुई !

एयर लाईन के स्टेशन मेनेजर की सूचना के मुताबिक हमने आनंद से श्रीलंका के तालिमार्थी जिसका टिकट खो गया था उसको अहमदाबाद भेज कर उसका टिकट उसे दिलवाया।

तालिमार्थी की खुशी का ठिकाना न रहा !

इस तरह से जब तक जिम्मेदारी पूरी नही हो जाती वहां तक ,काम के पीछे लगे रहने से सफलता का मीठा फल प्राप्त होता है , यह पाठ हमारी एनडीडीबी ने हमे भलीभांति सिखाया।

बाद मे तो किसी भी प्रकार का लायजन काम ,खास करके जिसमें चैलेंज हो, करने मे आनंद आता था । यह सीख आगे चल कर मेरे प्रोफेशनल डेवलपमेंट और ग्रोथ में बहुत काम आई।